बांग्लादेश, जहाँ 170 मिलियन लोग निवास करते हैं, इस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। लंबे समय से चल रहे तनावपूर्ण स्थिति अब व्यापक स्तर पर हिंसा में परिवर्तित हो गई हैं। इस बीच, प्रधानमंत्री शेख हसीना का त्यागपत्र और हिंसक विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है। आइए जानें कि इस परिवर्तन के कारण क्या हैं और इसका बांग्लादेश के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
बांग्लादेश में कोटा सिस्टम क्या है?
1972 में, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान ने कोटा सिस्टम शुरू किया था। इस सिस्टम के तहत, 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए हुए युद्ध में लड़े लोगों के बच्चों और पोतों के लिए सरकारी नौकरियां आरक्षित की गईं।
इस प्रणाली के अनुसार, पहली और दूसरी श्रेणी की 44 प्रतिशत सरकारी नौकरियां 'योग्यता' यानी मेरिट के आधार पर दी जाती हैं।
बाकी 56 प्रतिशत नौकरियां विशेष समुदायों के लिए रखी गई हैं:
इस कोटा सिस्टम का मकसद यह है कि अलग-अलग समुदायों को सरकारी नौकरियों में उचित मौका मिल सके।
छात्रों के विरोध-प्रदर्शन का मुख्य कारण
बांग्लादेश, जिसकी जनसंख्या 170 मिलियन है, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस वृद्धि का फायदा विश्वविद्यालय के स्नातकों को नौकरी के रूप में नहीं मिला।
आंकड़ों के अनुसार, करीब 18 मिलियन युवा बांग्लादेशी नौकरी की तलाश में थे और विश्वविद्यालय के स्नातकों की बेरोजगारी दर कम पढ़े-लिखे लोगों की तुलना में अधिक थी।
बांग्लादेश ने तैयार कपड़ों का बड़ा निर्यातक बनकर लगभग 40 अरब डॉलर के कपड़े बेचे। इस क्षेत्र में चार मिलियन से ज्यादा लोग काम करते हैं, जिनमें से कई महिलाएं हैं। लेकिन फैक्ट्री की नौकरियां युवाओं के लिए काफी नहीं थीं।
इसीलिए उन्होंने सरकारी नौकरियों में आरक्षण खत्म करने की मांग की, क्योंकि इससे उन्हें अधिक नौकरी के अवसर मिल सकते है।
इसी आरक्षण सिस्टम को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया। छात्रों का कहना था कि मौजूदा कोटा व्यवस्था से प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी, अवामी लीग, के समर्थकों को अनुचित लाभ मिल रहा था।
जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया, प्रदर्शनकारियों ने हसीना सरकार के खिलाफ व्यापक असंतोष जताया, जिसमें उन्होंने सरकार पर तानाशाही के तौर-तरीकों को अपनाने और असहमति को दबाने का आरोप लगाया। सरकार ने विरोध को शांत करने के लिए स्कूल और विश्वविद्यालय बंद कर दिए, लेकिन इससे आंदोलन थमने की बजाय और बढ़ गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
5 जून को, उच्च न्यायालय ने स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण को बहाल करने का आदेश दिया, और 2018 में अवामी लीग की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने नौकरशाही में 9वीं से 13वीं तक के ग्रेट पदों के लिए आरक्षण खत्म करने का फैसला किया। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह फैसला शेख हसीना की सरकार के पक्ष में है। हालांकि, इस फैसले ने बांग्लादेश की 1971 की स्वतंत्रता युद्ध के 'स्वतंत्रता सेनानियों' के बच्चों के लिए नौकरी में आरक्षण खत्म करने की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों को संतुष्ट नहीं किया।
21 जुलाई को, बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने अधिकांश आरक्षण को खत्म कर दिया। 30 प्रतिशत आरक्षण को घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया और 2 प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यकों के लिए रखा गया। बचे हुए 93 प्रतिशत पद अब बाकी बांग्लादेशियों के लिए मेरिट के आधार पर निर्धारित किए जाएंगे।
लेकिन शेख हसीना की सरकार ने विरोधियों पर सख्ती दिखाई। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर कड़ी कार्रवाई की, और अवामी लीग पार्टी से जुड़े समूहों ने भी प्रदर्शनकारियों पर हमले किए। इससे हसीना सरकार के खिलाफ एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा हो गया।
सरकार ने इसपर कैसे प्रतिक्रिया दी?
छात्रों ने विरोध प्रदर्शन को और तेज कर दिया जब हसीना ने उनकी मांगों को मानने से इनकार कर दिया और कोर्ट की प्रक्रियाओं का हवाला दिया।
सरकार ने दंगे की स्थिति से निपटने के लिए पुलिस तैनात की । सरकार द्वारा पूरे देश में कर्फ्यू लगाया गया और इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया गया। जब विरोधियों और सरकार समर्थक छात्र समूह के बीच हिंसक झड़पें हुईं, तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और डंडों से हमला किया गया। तनाव बढ़ने के बीच, कई जिलों में अर्धसैनिक बलों को भी तैनात किया गया।
ढाका के दक्षिण-पूर्व में स्थित कोमिल्ला विश्वविद्यालय के छात्र प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने उन पर गोली चला दी, जिससे 20 लोग घायल हो गए थे, जिनमें छात्र और तीन पुलिसकर्मी शामिल भी थे।
हालत और भी ज्यादा बिगड़ गए थे, जब प्रधानमंत्री शेख हसीना, ने इन प्रदर्शनकारियों को “राजाकार” कह दिया था। इसके बाद, सरकार के नेता और मंत्री कोशिश कर रहे हैं कि इन छात्रों को देशद्रोही और सरकार के खिलाफ दिखाया जाए।
बांग्लादेश में “राजाकार” एक अपमानजनक शब्द है, जिसका मतलब है वे लोग जिन्होंने 1971 की युद्ध में पाकिस्तान का समर्थन किया और बांग्लादेश से धोखा किया।
25 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगें दोहराईं। वे चाहते हैं कि प्रदर्शन के नेताओं को छोड़ा जाए, कर्फ्यू हटाया जाए, और विश्वविद्यालय फिर से खोले जाएं। उन्होंने माना कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश और सरकार की सहमति ने उनके आरक्षण प्रणाली में सुधार की मांग को पूरा किया। लेकिन एसोसिएटेड प्रेस के मुताबिक 150 से ज्यादा छात्रों की मौत और लगभग 2,700 गिरफ्तारियां स्वीकार नहीं किया गया।
4 अगस्त को, पुलिस कार्रवाई में लगभग 100 लोग मारे गए, जिनमें 13 पुलिसकर्मी भी शामिल थे । बांग्लादेश में आक्रोश फैल गया। 5 अगस्त को, शेख हसीना को अपना पद छोड़ना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा, जिससे उनके 15 साल के शासन का अंत हो गया। लोगों का गुस्सा इतना था कि उनके पिता, स्वतंत्रता सेनानी शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को भी गिरा दिया गया और उनका अपमान किया गया।
क्षेत्रीय प्रभाव और भारत की प्रतिक्रिया
बांग्लादेश में हो रही उथल-पुथल पर भारत समेत सभी पड़ोसी देशों की नजर है। रिपोर्टों के मुताबिक, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में पूरी जानकारी दी गई है। दिल्ली में एक उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक भी हुई जिसमें इस हालात पर चर्चा की गई।
भारत-बांग्लादेश की 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा पर सीमा सुरक्षा बल (BSF) को सतर्क कर दिया गया है। BSF के महानिदेशक दलजीत सिंह चौधरी खुद कोलकाता गए हैं ताकि स्थिति का जायजा ले सकें। यह दिखाता है कि भारत अपने पड़ोसी देश में हो रहे इस संकट को कितनी गंभीरता से ले रहा है।
मुहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ली
8 अगस्त को नॉबेल शांति पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद युनुस ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख के रूप में शपथ ली। यह शपथ ग्रहण प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे और भारत भाग जाने के तीन दिन बाद हुआ। इस समारोह में कई राजनीतिक नेता, नागरिक समाज के सदस्य, जनरल और राजनयिक भी मौजूद थे।
युनुस ने शपथ लेते हुए कहा, 'मैं संविधान की रक्षा, समर्थन और पालन करूंगा।' राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने उन्हें शपथ दिलाई, और युनुस ने वादा किया कि वह अपने कर्तव्यों को 'ईमानदारी से' निभाएंगे।
बांग्लादेश इस राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है, और कई महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं:
1. अंतरिम सरकार की भूमिका क्या होगी, और यह कितने समय तक सत्ता में रहेगी?
2. क्या लोकतांत्रिक शासन बहाल करने के लिए जल्दी चुनाव कराए जाएंगे?
3. बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर भारत और अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ, किस तरह प्रतिक्रिया देंगी?
4. क्या अंतरिम सरकार उन मुद्दों का समाधान कर पाएगी जिनके कारण प्रदर्शन शुरू हुए थे, जैसे नौकरी कोटा और राजनीतिक स्वतंत्रता से जुड़ी चिंताएं?
आने वाले दिन और हफ्ते बांग्लादेश के भविष्य को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण होंगे। अंतरिम सरकार के सामने शांति बहाल करने के साथ-साथ उन समस्याओं का समाधान करने की चुनौती है, जिन्होंने इन विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया।
जब बांग्लादेश के इस कठिन अध्याय पर धूल जमने लगेगी, तब पूरी दुनिया की नजर इस पर होगी। इस संकट का समाधान न केवल बांग्लादेश के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिरता के लिए भी दूरगामी प्रभाव डालेगा।
निष्कर्ष
बांग्लादेश संकट ने देश के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को हिलाकर रख दिया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बांग्लादेश किस दिशा में आगे बढ़ता है। अंतरिम सरकार के सामने चुनौतियाँ बड़ी हैं, लेकिन अगर वे सही कदम उठाएं और जनहित में फैसले लें, तो बांग्लादेश एक स्थिर और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकता है।
बांग्लादेश में शांति बहाल करना इस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसके लिए सरकार को जनता के बीच विश्वास बहाल करना होगा, और उन मुद्दों का समाधान करना होगा, जिनकी वजह से यह संकट पैदा हुआ। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी इस पर पैनी नजर है, क्योंकि बांग्लादेश की स्थिरता पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।
अंत में, पूरे यूनाइटेड भारत की टीम आप सभी देशवासियों और बांग्लादेश के लोगो से शांति बनाये रखने और किसी भी प्रकार की झूठी अपवाह पर विश्वास न करने का अनुरोध करते है।