ब्रांड फाइनेंस - एक अग्रणी ब्रांड वैल्यूएशन फर्म ने अमूल को दुनिया के सबसे मजबूत भोजन ब्रांड के रूप में सम्मानित किया। अमूल ने 91 के उच्च ब्रांड स्ट्रेंथ इंडेक्स (बीएसआई) स्कोर और 3.3 बिलियन डॉलर के ब्रांड वैल्यूएशन के साथ यह मान्यता हासिल की। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो पिछले वर्ष, 2023 की तुलना में ब्रांड मूल्य में 11% की वृद्धि को दर्शाती है।
भारत के हर घर में एक नाम है जो सबको प्यारा है - अमूल। चाहे वो दूध हो, मक्खन हो, या फिर चॉकलेट, अमूल हर जगह अपनी मीठी छाप छोड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सफलता की कहानी कैसे शुरू हुई? आइए, इस रोचक यात्रा पर चलते हैं।
इतिहास
अमूल सहकारी समिति का रजिस्ट्रेशन 19 दिसंबर 1946 को हुआ था। यह उस समय के पोल्सन डेयरी के डीलरों और एजेंटों द्वारा स्थानीय दूध उत्पादकों के शोषण के खिलाफ एक कदम था। उस समय दूध की कीमतें बिना किसी नियम के तय होती थीं। सरकार ने पोल्सन को कैरा के किसानों से दूध खरीदकर मुंबई भेजने का अधिकार दे रखा था।
इस अन्याय से परेशान होकर कैरा के किसानों ने अपने नेता त्रिभुवनदास के. पटेल के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल से मदद मांगी। सरदार पटेल ने उन्हें सलाह दी कि वे कैरा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ (KDCMPUL) बनाएं और पोल्सन पर निर्भर रहने के बजाय सीधे बॉम्बे मिल्क स्कीम को दूध बेचें। उन्होंने किसानों की मदद के लिए मोरारजी देसाई को भेजा।
दूध संग्रहण को विकेंद्रीकृत किया गया क्योंकि ज्यादातर लोग छोटे किसान थे, जो हर दिन 1-2 लीटर दूध दे सकते थे। हर गाँव में इसके लिए सहकारी समितियाँ बनाई गईं।
जून 1948 में KDCMPUL ने 'बॉम्बे मिल्क स्कीम' के लिए दूध को साफ और सुरक्षित बनाना शुरू किया। त्रिभुवनदास पटेल के नेतृत्व में, 1973 में अमूल ने अपना 25वां सालगिरह मनाई, जिसमें मोरारजी देसाई, मणिबेन पटेल और वर्गीज कुरियन शामिल हुए।
यह सहकारी समिति डॉ. वर्गीज कुरियन और एच.एम. दलाया द्वारा बनाई और चलाई गई थी। दलाया ने पहली बार भैंस के दूध से स्किम्ड मिल्क पाउडर बनाने का तरीका खोजा, और कुरियन की मदद से इसे बड़े पैमाने पर बनाया गया। इससे गुजरात के आनंद में सहकारी समिति की पहली आधुनिक डेयरी शुरू हुई, जिसने कई पुराने बाजार के खिलाड़ियों को टक्कर दी।
जल्द ही, इस डेयरी की सफलता की खबर आनंद के आसपास के इलाकों में फैल गई। इसके बाद, गुजरात के मेहसाणा, बनासकांठा, बड़ौदा, साबरकांठा और सूरत जैसे जिलों में भी इसी तरीके से पाँच और डेयरियाँ खोली गईं, जिसे 'आनंद पैटर्न' कहा जाता है।
1970 में भारत में श्वेत क्रांति शुरू हुई। 1973 में गुजरात सहकारी दूध विपणन संघ लिमिटेड (GCMMF) बनाया गया, जो सभी जिलों की सहकारी समितियों का मुख्य विपणन संगठन है। इसका मकसद मिलकर काम करना और बाजार को बढ़ाना था, विज्ञापन पर पैसे बचाना और आपस की प्रतिस्पर्धा से बचना था। कैरा यूनियन, जिसे 1955 से अमूल नाम का ब्रांड था, ने यह नाम GCMMF को दे दिया।
तब से, GCMMF भारत की सबसे बड़ी खाद्य उत्पाद विपणन संस्था बन गई है। यह गुजरात की दूध सहकारी समितियों की प्रमुख संस्था है। GCMMF 'अमूल' और 'सागर' ब्रांड के उत्पादों की खास बिक्री करती है।
अमूल मॉडल ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनने में मदद की है। देशभर में 15 लाख से ज्यादा दूध उत्पादक 1,44,500 डेयरी सहकारी समितियों में दूध जमा करते हैं। इस दूध को 184 जिला सहकारी संघों में संसाधित किया जाता है और 22 राज्य संघ इसे बाजार में बेचते हैं, जिससे लाखों लोगों का जीवन बेहतर होता है।
नरेंद्र मोदी ने 30 सितंबर 2018 को आनंद के मोगर में स्थित अमूल के चॉकलेट प्लांट का उद्घाटन किया। यह प्लांट अमूल के मुख्यालय के पास है।
अमूल का बाजार प्रभुत्व
अमूल, जो सात दशकों से भी ज्यादा पुरानी कंपनी है, को Brand Finance की Global Food & Drinks Report 2024 में दुनिया के सबसे मजबूत खाद्य ब्रांड के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है। रिपोर्ट में अमूल का प्रभावशाली Brand Strength Index (BSI) स्कोर 100 में से 91 अंक बताया गया है, जिससे इसे AAA+ रेटिंग मिली है। यह 75% दूध बाजार, 85% मक्खन बाजार, और 66% पनीर बाजार पर नियंत्रण रखता है।
अमूल के ब्रांड की कीमत में 2023 से 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, और अब यह 3.3 अरब डॉलर तक पहुँच गई है। जिससे यह वैश्विक खाद्य ब्रांड्स में खास बनता है। हर्शीज़ के साथ इसकी रेटिंग AAA+ है, लेकिन हर्शीज़ की वैल्यू थोड़ी ज्यादा $3.9 बिलियन है, हालांकि इसमें थोड़ी कमी आई है। दूसरी ओर, नेस्ले दुनिया का सबसे कीमती खाद्य ब्रांड है जिसकी वैल्यू $20.8 बिलियन है, और इसके बाद लेज़ की वैल्यू $12 बिलियन है।
अमूल: एक अम्ब्रेला ब्रांड
अमूल एक अम्ब्रेला ब्रांड के रूप में काम करता है। इसका मतलब है कि अमूल कई अलग-अलग उत्पादों के लिए मुख्य ब्रांड है। इसमें दूध, दूध पाउडर, मक्खन, घी, पनीर, चॉकलेट उत्पाद, मिठाई, आइसक्रीम, और कंडेंस्ड मिल्क शामिल हैं। अमूल के विभिन्न उप-ब्रांड्स में अमूलस्प्रे, अमूलस्प्री, अमूल्या, और न्यूट्रमूल शामिल हैं।
खाद्य तेल के उत्पादों को धारा और लोकधारा ब्रांड के तहत बेचा जाता है, मिनरल वॉटर जलधारा ब्रांड के नाम से बिकता है, और फल के जूस सफाल नाम से बिकते हैं। इस अम्ब्रेला ब्रांड की मदद से GCMMF ने कंपनी के अंदर टकराव से बचने और उत्पादों के विकास के लिए एक मौका बनाया है।
अमूल की सफलता के कारण
अमूल गर्ल (अमूल का विज्ञापन)
1966 में, अमूल ने विज्ञापन बनाने वाले सिल्वेस्टर डा कुणा को अमूल बटर के लिए विज्ञापन तैयार करने के लिए रखा। डा कुणा ने ऐसे विज्ञापन बनाए जो रोज़ की समस्याओं पर आधारित थे। ये विज्ञापन बहुत ही लोकप्रिय हुए और सबसे लंबे समय तक चलने वाले विज्ञापन के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी मिला।
1980 के दशक में, कार्टून आर्टिस्ट कुमार मोरे और स्क्रिप्ट राइटर भारत दाभोलकर को अमूल के विज्ञापन बनाने के लिए लिया गया। लेकिन दाभोलकर ने विज्ञापनों में सेलेब्रिटीज का चलन नहीं अपनाया। दाभोलकर ने अमूल के चेयरमैन वर्गीज कुरियन को धन्यवाद कहा, जिन्होंने विज्ञापन बनाने के लिए एक खुला माहौल तैयार किया।
अमूल गर्ल कंपनी का विज्ञापन का चिन्ह है, जिसका उपयोग ब्रांड को प्रमोट करने के लिए किया जाता है। यह कार्टून पात्र लंबे समय से चल रहे विज्ञापन में स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल होता है। अमूल गर्ल प्रिंट विज्ञापनों में मज़ाक जोड़ने के लिए भी इस्तेमाल की जाती है।
भारतीयों ने अमूल के विज्ञापन को पसंद किया, जिससे ग्राहकों की भागीदारी बढ़ गई। अमूल की पहचान भी बढ़ी। अमूल गर्ल का विज्ञापन अभियान भारतीय विज्ञापनों में सबसे अच्छे विचारों में से एक माना जाता है।
अमूल के आंकड़े: एक विशाल नेटवर्क की झलक
अमूल की ताकत उसके विशाल नेटवर्क में छिपी है। आइए, कुछ रोचक आंकड़ों पर नज़र डालें जो इस ब्रांड की विशालता को दर्शाते हैं।
अमूल के साथ 7 लाख 17 हजार 850 से भी ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं। ये किसान अमूल की रीढ़ की हड्डी हैं। इतना ही नहीं, देश भर में 1269 गाँवों में दूध संग्रह केंद्र हैं। यानी हर दिन हजारों गाँवों से ताजा दूध इकट्ठा किया जाता है।
अमूल की दूध संभालने की क्षमता भी कमाल की है। यह प्रतिदिन 84 लाख लीटर दूध संभाल सकता है। लेकिन वास्तव में, रोजाना औसतन 41 लाख लीटर दूध इकट्ठा किया जाता है।
दूध को सुखाने की क्षमता की बात करें तो अमूल एक दिन में 135 मीट्रिक टन दूध सुखा सकता है। इसके अलावा, दूध का पानी सुखाने की क्षमता 60 मीट्रिक टन प्रतिदिन है।
और अंत में, पशुओं के चारे का उत्पादन। अमूल एक दिन में 6230 मीट्रिक टन पशु चारा बना सकता है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अमूल सिर्फ दूध उत्पादन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पशुपालन के हर पहलू पर ध्यान देता है।
ये आंकड़े सिर्फ संख्याएँ नहीं हैं। ये अमूल की विशालता, उसकी क्षमता और उसके प्रभाव को दर्शाते हैं। हर आंकड़े के पीछे हजारों किसानों की मेहनत, लाखों गायों की सेवा और करोड़ों ग्राहकों का विश्वास छिपा है। यही है अमूल की असली ताकत।
निष्कर्ष
अमूल सिर्फ एक ब्रांड नहीं, बल्कि हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। छोटे से शुरू होकर, आज यह देश का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया है। इसकी सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि एकता में कितनी ताकत होती है।अमूल ने न सिर्फ अपने उत्पादों से हमारा दिल जीता है, बल्कि लाखों किसानों की जिंदगी भी बदल दी है। इसने गांवों में रोजगार दिया, महिलाओं को आगे बढ़ाया और देश को दूध में आत्मनिर्भर बनाया।
आज भी जब हम अमूल का दूध पीते हैं या उसका मक्खन खाते हैं, तो हमें अपनेपन का एहसास होता है। अमूल गर्ल के विज्ञापन हमें हंसाते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं।अमूल की यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। यह हर दिन नए-नए उत्पाद लाकर हमारी जिंदगी को और मीठा बना रहा है।
अंत में, अमूल सिर्फ एक दूध कंपनी नहीं है। यह हमारे देश की प्रगति की कहानी है, किसानों के सशक्तिकरण का प्रतीक है और भारतीय उद्यमशीलता की मिसाल है। अमूल वाकई में हमारे दिलों का सच्चा साथी है, जो हमेशा मीठी यादें देता रहेगा।