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कोर्ट मैरिज करना चाहते है? जानिए भारत में कोर्ट मैरिज करने की प्रक्रिया।

भारत में कोर्ट मैरिज

परंपरा से अधिक सादगी

Posted
Jul 16, 2024

हिन्दू शादियां धार्मिक परम्पराओं से जुडी होती है। हिन्दू शादियां धार्मिक परंपराओं से जुड़ी होती हैं। यदि विवाह में 7 फेरे नहीं लिए गए हों तो वह शादी स्वीकार नहीं की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की मांगों को स्पष्ट किया है।

 कोर्ट ने कहा, "विवाह एक व्यापारिक सौदा नहीं है। यह एक गंभीर और महत्वपूर्ण घटना है जिसे इस तरह से मनाया जाता है ताकि एक पुरुष और एक महिला द्वारा बनाई गई रिश्ते की बुनियाद के रूप में एक परिवार की स्थापना की जा सके, जो भारतीय समाज की मूल इकाई है।" इस न्याय से, अधिनियम के अंतर्गत किए गए समारोह व्यक्ति की आध्यात्मिकता को शुद्ध करते हैं और परिवार की आधारशिला को स्थापित करने में मदद करते हैं। इसलिए, पंडित और विवाहित जोड़े को इन समारोहों और रीति-रिवाजों का विशेष महत्व देना चाहिए। न्याय ने कहा, "1955 के हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत  विवाहित जोड़े के जीवन में इस घटना के उपकरणीय और आध्यात्मिक पहलुओं को सम्मानित रूप से स्वीकार करता है।"

इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि कोर्ट मैरिज क्या होती है, कैसे होती है, और इस प्रक्रिया में कितना समय लगता है?

 

कोर्ट मैरिज क्या है?

भारत में कोर्ट मैरिज पारंपरिक शादियों से अलग होती है। इसमें विवाह की प्रक्रिया को कोर्ट के सामने पूरा किया जाता है बिना किसी पारंपरिक विवाह समारोह के। विवाह के लिए एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह का अनुष्ठान किया जाता है, जहां कोर्ट, विवाह अधिकारी और तीन गवाहों की उपस्थिति होती है। यहां पर विवाह करने के लिए किसी भी जाति, धर्म या पंथ के बिना किसी भी बंधन की जरूरत नहीं होती है।

भारत में कोर्ट मैरिज का प्रक्रिया बहुत ही सरल है। यह विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अनुसार कानूनी रूप से स्वीकृत होता है। इसके तहत वो जोड़े जिन्हें अपने विवाह को आधिकारिक बनाना होता है, उन्हें एक स्पष्ट और व्यवस्थित विवाह का मार्ग प्राप्त होता है। इस रूप में विवाह जाति, पंथ या धार्मिक प्रतिबंधों से ऊपर होता है और एक नियुक्त विवाह अधिकारी की निगरानी में संपन्न होता है।

कोर्ट मैरिज के लिए एक शर्त यह है कि इसमें विशेष विवाह अधिनियम 1954 की आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। यहां तक कि दोनों पक्षों की भारतीय नागरिकता का होना भी आवश्यक नहीं होता है। कोर्ट मैरिज एक भारतीय नागरिक द्वारा किसी विदेशी नागरिक के साथ भी की जा सकती है। विवाहीत जोड़ों में यदि व्यक्तियों के बीच अलग-अलग लिंग या धर्म हो, तो भी कोर्ट मैरिज का विकल्प उपलब्ध है।

 

भारत में कोर्ट मैरिज

 

भारत में कोर्ट मैरिज के लिए पात्रता मानदंड

  1. आयु: भारत में शादी करने के लिए एक कानूनी उम्र निर्धारित है। यदि कोई इस उम्र को पूरा नहीं करता है और शादी करता है, तो उस शादी को कोर्ट से अमान्य कराया जाता है। लड़की के लिए कानूनी उम्र 18 वर्ष है और लड़के के लिए 21 वर्ष। शादी की कानूनी उम्र में 18 या 21 वर्ष रनिंग इयर नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे पूरी तरह सम्पन्न होना चाहिए। इसमें एक भी दिन की कमी नहीं होनी चाहिए।

 

  1. सहमति: दोनों पक्षों को स्वेच्छा से विवाह के लिए अपनी सहमति देनी होगी। सहमति किसी भी दबाव, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव से मुक्त होनी चाहिए।

 

  1. निषिद्ध संबंध: पार्टी किसी भी निषिद्ध संबंध में नहीं होनी चाहिए, जैसे कि सीधे रिश्तेदार और विवाह द्वारा संबंधित कुछ रिश्ते, जैसे कि भाई-बहन, माता-पिता और बच्चे।

 

  1. मौजूदा विवाह: विवाह के समय किसी पक्ष का अगर पहले से ही विवाहित होता है, तो उसके विवाह की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है। विशेष विवाह अधिनियम के अनुसार बहुविवाह अनुमति नहीं है।

 

  1. बुद्धिमत्ता: विवाह के समय दोनों पक्षों को स्वस्थ मानसिक स्थिति में होना चाहिए। वे विवाह के प्रकृति और परिणामों को समझ सकते हों।

 

  1. विवाह की सूचना: विवाह के लिए विवाह पंजीकरण कार्यालय में आवश्यक प्रारूप में सूचना देनी होती है। इसमें विवाह करने की इच्छा घोषित की जाती है और संबंधित पक्षों के विवरण प्रदान किए जाते हैं।

 

  1. प्रतीक्षा अवधि और आपत्तियाँ: विवाह की सूचना देने के बाद, आमतौर पर 30 दिनों की प्रतीक्षा अवधि होती है। इस अवधि में, किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कि विवाह अधिनियम की शर्तों का उल्लंघन करता हो, आपत्तियाँ उठाई जा सकती हैं।

 

भारत में कोर्ट मैरिज

 

भारत में कोर्ट मैरिज के लिए जरूरी दस्तावेज़

कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन के साथ जोड़े को ये दस्तावेज़ जमा करने होते हैं:

1. दूल्हा और दुल्हन के अलग-अलग शपथ पत्र, जिसमें हों:

   - जन्म तिथि

   - वैवाहिक स्थिति (अविवाहित/तलाकशुदा/विधवा या विधुर)

   - दोनों के बीच कोई करीबी रिश्ता होने की पुष्टि

2. दूल्हा और दुल्हन की पासपोर्ट साइज फोटो

3. दूल्हा और दुल्हन का पता प्रमाण

4. दूल्हा और दुल्हन की जन्म तिथि का प्रमाण

5. शादी का नोटिस, जो दोनों ने साइन किया हो

6. तलाकशुदा होने पर तलाक के आदेश की कॉपी और विधुर/विधवा होने पर पति/पत्नी की मृत्यु प्रमाण पत्र

 

गवाहों के दस्तावेज़:

1. पासपोर्ट साइज फोटो

2. पैन कार्ड की कॉपी

3. पहचान प्रमाण की कॉपी

ये दस्तावेज़ कोर्ट मैरिज के लिए जरूरी हैं और कानूनी प्रक्रिया को पूरा करते हैं।

 

भारत में कोर्ट मैरिज

 

 

कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया

अब आइए, कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया को विस्तार से समझते हैं:

 

चरण 1: विवाह की सूचना

पहला कदम है विवाह की सूचना देना। इसके लिए निम्नलिखित करना होता है:

  • दूल्हा और दुल्हन को विवाह अधिकारी को शादी की सूचना देनी होती है। यह सूचना शादी की तारीख से 30 दिन पहले देनी चाहिए।
  • यह सूचना उस विवाह अधिकारी को दी जानी चाहिए, जिसके क्षेत्र में दोनों में से कोई एक 30 दिन या उससे ज्यादा समय से रह रहा हो।

चरण 2: सूचना का प्रकाशन

विवाह अधिकारी इस सूचना को अपने कार्यालय में प्रमुख जगह पर लगाते हैं। इसके बाद किसी भी व्यक्ति को शादी पर आपत्ति करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है। अगर 30 दिन में कोई आपत्ति नहीं आती, तो अधिकारी शादी करवा सकते हैं।

चरण 3: आपत्ति (अगर कोई हो)

कोई भी व्यक्ति सूचना के प्रकाशित होने के 30 दिन के अंदर शादी पर आपत्ति कर सकता है। आपत्ति कानूनी कारणों पर होनी चाहिए, निजी कारणों पर नहीं। विवाह अधिकारी को 30 दिन के भीतर इस आपत्ति की जांच करनी होती है। अगर आपत्ति सही नहीं पाई जाती, तो अधिकारी शादी करवा सकते हैं।

 

भारत में कोर्ट मैरिज

 

चरण 4: घोषणा

अगर कोई आपत्ति नहीं है या अधिकारी आपत्ति खारिज कर देते हैं, तो दूल्हा-दुल्हन और तीन गवाहों को विवाह अधिकारी के सामने जाकर घोषणा पत्र जमा करना होता है। यह घोषणा पत्र अधिकारी के सामने भरकर जमा करना होता है।

चरण 5: विवाह का स्थान

विवाह अधिकारी के कार्यालय में या किसी अन्य जगह शादी हो सकती है, जो दोनों पक्ष तय करें। अगर दूसरी जगह शादी हो, तो अतिरिक्त शुल्क देना होगा। शादी किसी भी तरीके से हो सकती है जो दोनों पक्षों को मान्य हो।

 

चरण 6: विवाह प्रमाण पत्र

विवाह अधिकारी शादी के बाद विवाह प्रमाण पत्र देते हैं। दूल्हा-दुल्हन और तीन गवाहों को इस पर हस्ताक्षर करना होता है। यह प्रमाण पत्र शादी का पक्का सबूत होता है और अधिकारी इसे अपनी रजिस्टर बुक में दर्ज करते हैं।

कोर्ट मैरिज के लाभ

  1. सरलता: यह प्रक्रिया बहुत सरल है और किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती।
  2. कानूनी सुरक्षा: यह विवाह कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त होता है और इसमें सभी कानूनी अधिकार शामिल होते हैं।
  3. समय और धन की बचत: यह प्रक्रिया समय और धन दोनों की बचत करती है।
  4. समानता: इसमें जाति, धर्म, और वर्ग का कोई भेदभाव नहीं होता।
  5. अंतरराष्ट्रीय मान्यता: यह शादी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता प्राप्त होती है।
  6. साथी की मौत से शादी अवैध नहीं: एक साथी की मौत से शादी अवैध नहीं होती।

 

भारत में कोर्ट मैरिज

 

निष्कर्ष

भारत में कोर्ट मैरिज एक सरल, कानूनी और सुरक्षित तरीका है, जो समाज में समानता और कानूनी सुरक्षा को बढ़ावा देता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो किसी सामाजिक या पारिवारिक दबाव से बचना चाहते हैं और अपनी शादी को कानूनी मान्यता देना चाहते हैं। कोर्ट मैरिज के फायदे जैसे दहेज की आवश्यकता नहीं, माता-पिता की मंजूरी की जरूरत नहीं, और शादी का सरकारी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त होना इसे एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं।

कोर्ट मैरिज के जरिए शादी करने वाले जोड़े अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त हो सकते हैं, क्योंकि यह शादी कानून द्वारा संरक्षित होती है। इससे केवल शादी का पंजीकरण आसान हो जाता है, बल्कि भविष्य में कोई कानूनी विवाद होने पर भी सुरक्षा मिलती है।

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