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भारतीय कलाकृतियों की तस्करी: एक गंभीर समस्या

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

भारत की सांस्कृतिक धरोहरों का अवैध व्यापार

Posted
Aug 08, 2024

भारत, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्राचीन इतिहास के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, आज एक गंभीर समस्या का सामना कर रहा है - भारतीय कलाकृतियों की तस्करी भारतीय कलाकृतियों की तस्करी एक ऐसा मुद्दा है जो केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुंचाता है बल्कि हमारे इतिहास और पहचान को भी खतरे में डालता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि भारतीय कलाकृतियों की तस्करी क्यों हो रही है, इसके पीछे के कारण, इसका प्रभाव और इसे रोकने के लिए उठाए गए कदम।

 

तस्करी शब्द से आपका क्या मतलब है?

प्राचीन वस्तुएं या कलाकृतियां जब अवैध तरीके से राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर बेची या खरीदी जाती है, तो इसे तस्करी कहा जाता है। यह नियमों और कानूनों का उल्लंघन है। यह धंधा छोटा-मोटा नहीं, बल्कि करोड़ों रुपये का है।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी क्यों होती है?

1. उच्च मांग और मुनाफा: भारतीय कलाकृतियों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक मांग है। प्राचीन मूर्तियों, चित्रों और अन्य कलाकृतियों की ऊँची कीमतें तस्करों को आकर्षित करती हैं। ये कलाकृतियाँ विदेशों में ऊंची कीमतों पर बेची जाती हैं, जिससे तस्करों को भारी मुनाफा होता है।

2. सुरक्षा की कमी: कई पुरातात्विक स्थल और संग्रहालय पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं होने के कारण तस्करों के लिए आसान निशाना बन जाते हैं। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में स्थित धरोहर स्थल विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

 

3. जागरूकता की कमी: अनेक लोग भारतीय कलाकृतियों के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को नहीं समझते। इसके चलते तस्करों को स्थानीय लोगों की मदद से इन धरोहरों को चुराना आसान हो जाता है।

4. कानून का ठीक से पालन होना: कई बार पकड़े जाने पर भी बड़े तस्कर बच निकलते हैं। इससे और लोग इस धंधे में जाते हैं।

5. विदेशी बाजार की मांग: कई विदेशी संग्रहालय और कला प्रेमी इन चीजों को खरीदना चाहते हैं, चाहे वे चोरी की ही क्यों हों। ये सब मिलकर भारतीय कलाकृतियों की तस्करी को बढ़ावा देते हैं।

 

तस्करी का प्रभाव

1. सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान : तस्करी के कारण हमारी प्राचीन धरोहर और संस्कृति का नुकसान होता है। ये कलाकृतियाँ हमारे इतिहास की अमूल्य धरोहर हैं, जिनके खोने से हमारी पहचान पर भी असर पड़ता है।

 

2. आर्थिक नुकसान : तस्करी के कारण भारत को आर्थिक नुकसान भी होता है। इन कलाकृतियों की ऊँची कीमतें देश के बाहर चली जाती हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

3. पर्यटन पर प्रभाव : भारतीय कलाकृतियों की तस्करी से पर्यटन पर भी असर पड़ता है। प्राचीन धरोहर स्थल और संग्रहालय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। तस्करी के कारण इन स्थलों की प्रसिद्धि और पर्यटन की संभावनाओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

 

केस

सुभाष कपूर: एक कुख्यात कला तस्कर

सुभाष कपूर, जो पहले मैडिसन एवेन्यू के एक कला विक्रेता थे, अब दुनिया के सबसे बड़े कला तस्करों में से एक जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदू, दक्षिण एशियाई, और बौद्ध पुरावशेषों के एक प्रमुख विक्रेता के रूप में अपना करियर बनाया। उनकी गैलरी "आर्ट ऑफ पास्ट" मैडिसन एवेन्यू में थी और संग्रहालयों के लिए पुरावशेषों का मुख्य स्रोत थी।

1 नवंबर 2012 को, भारतीय कला विक्रेता सुभाष कपूर और उनके पांच साथियों को तमिलनाडु के अरियालुर जिले के एक मंदिर से प्राचीन धार्मिक मूर्तियों की चोरी और अवैध निर्यात के लिए 10 साल की जेल की सजा मिली। यह सजा भारत और अमेरिका में कपूर के पुरावशेषों के लेनदेन की वर्षों की जांच के बाद दी गई। जांच से पता चला कि कपूर और उनके तस्करी गिरोह ने $143 मिलियन से अधिक मूल्य की 2,600 से ज्यादा वस्तुओं की तस्करी की थी।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

 

तस्करी को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  1. एंटिक्विटीज और आर्ट ट्रेजर एक्ट, 1972 (Antiquities and Art Treasures Act, 1972)

एंटिक्विटीज और आर्ट ट्रेजर एक्ट, 1972, के अनुसार, प्राचीन वस्तु को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि इसे 100 साल से कम का नहीं होना चाहिए। इनमें निम्नलिखित वस्तुएं शामिल हैं:

  • कोई भी सिक्का, मूर्ति, चित्र, शिलालेख या अन्य कला या शिल्पकला का कार्य
  • कोई भी वस्तु या चीज़ जो किसी भवन या गुफा से अलग हो
  • कोई भी वस्तु या चीज़ जो विज्ञान, कला, शिल्प, साहित्य, धर्म, रीति-रिवाज, नैतिकता या राजनीति के प्राचीन युगों को दर्शाती हो
  • कोई भी वस्तु या चीज़ जो ऐतिहासिक रुचि की हो

पांडुलिपि, रिकॉर्ड या अन्य दस्तावेज़ जो वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक या सौंदर्यात्मक महत्व के हों, उनके लिए यह अवधि 75 साल से कम नहीं होनी चाहिए।

  • एंटिक्विटीज और आर्ट ट्रेजर एक्ट, 1972 के अनुसार, ऐसे कला के टुकड़ों के मालिकों को उन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के साथ रजिस्ट्रेशन करना जरुरी है। ASI पुरातात्विक उत्खननों, स्मारकों के संरक्षण और धरोहर स्थलों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। यह कानून प्राचीन वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाता है और देश के भीतर उनकी बिक्री केवल लाइसेंस के तहत ही करने की अनुमति देता है। इन नियमों का पालन करने पर तीन साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। एक विवादास्पद नियम के अनुसार, राज्य बिना उचित मूल्यांकन के किसी कला वस्तु को उसके मालिक से जबरदस्ती ले सकता है।
  • UNESCO का 1970 का सम्मेलन, जो सांस्कृतिक संपत्ति की अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्व के हस्तांतरण को रोकने और रोकथाम के उपायों पर आधारित है, सांस्कृतिक संपत्ति को उस देश के लिए महत्वपूर्ण पुरातत्व, प्राचीन इतिहास, इतिहास, साहित्य, कला या विज्ञान से संबंधित संपत्ति के रूप में परिभाषित करता है।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

 

 

2. सांस्कृतिक संपत्ति समझौते

भारत सरकार और अमेरिका सरकार ने, 26 जुलाई 2024 को, नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित 46वें विश्व धरोहर समिति की बैठक के दौरान पहली बार 'सांस्कृतिक संपत्ति समझौते' पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता भारतीय प्राचीन वस्तुओं की अमेरिका में अवैध तस्करी को रोकने और नियंत्रित करने के लिए है।

संस्कृतिक संपत्ति समझौता (CPA) 1970 की UNESCO ट्रीटी की तरह है, जो सांस्कृतिक संपत्तियों की अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्व के हस्तांतरण को रोकने और रोकने के उपायों पर आधारित है। दोनों देश इस ट्रीटी  के सदस्य हैं। सांस्कृतिक संपत्तियों की अवैध तस्करी एक पुरानी समस्या है जिसने इतिहास में कई संस्कृतियों और देशों को प्रभावित किया है। 1970 की UNESCO ट्रीटी के लागू होने से पहले, भारत से बड़ी संख्या में प्राचीन वस्तुएं तस्करी करके बाहर ले जाई गई थीं, और अब ये वस्तुएं दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों, संस्थानों और निजी संग्रहों में रखी गई हैं।

 

  • केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री, श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि भारतीय कलाकृतियों और सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा अब भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा बन गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत सरकार इस दिशा में काम कर रही है और दुनियाभर से भारतीय कलाकृतियों को वापस लाने की कोशिश कर रही है। मंत्री ने बताया कि 1976 से अब तक भारत ने 358 प्राचीन वस्तुएं वापस मंगवाई हैं, जिनमें से 2014 के बाद 345 कलाकृतियां वापस आई हैं।

 

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी

 

  • 2022 में, भारत सरकार और अमेरिका सरकार ने एक मंच पर आकर 1970 के यूनेस्को कन्वेंशन के अनुच्छेद 9 के तहत द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने  पर चर्चा की। इस कन्वेंशन का उद्देश्य सांस्कृतिक संपत्तियों की अवैध आयात, निर्यात और स्वामित्व के हस्तांतरण को रोकना है। इस चर्चा के बाद, भारतीय विदेश मंत्रालय ने अमेरिका को एक राजनयिक नोट भेजा, जिसे अमेरिका ने सकारात्मक रूप से स्वीकार किया और 16 मार्च 2023 को एक और राजनयिक नोट के माध्यम से जवाब दिया, जिसमें समझौते के लिए प्रक्रियाएं सुझाई गईं। इन कदमों में सांस्कृतिक संपत्तियों की सुरक्षा और पुरातात्विक और एथनोलॉजिकल सामग्री के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर ध्यान दिया गया। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और कानूनी स्थिति और सहयोग की संभावनाओं को तथ्यों के बयान में दस्तावेजित किया गया और दोनों पक्षों के बीच विभिन्न बैठकें और चर्चाएं आयोजित की गईं। इस प्रक्रिया के दौरान, एक NGO 'एंटीक्विटी कोलिशन' ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

निष्कर्ष

भारतीय कलाकृतियों की तस्करी एक गंभीर समस्या है जो हमारी सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँचा रही है। इससे निपटने के लिए सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और आम जनता को मिलकर काम करना होगा। हमें अपनी कला और संस्कृति की रक्षा करनी होगी क्योंकि ये हमारी पहचान का अहम हिस्सा हैं।

हमें उम्मीद करनी चाहिए कि बेहतर कानून, कड़ी सुरक्षा व्यवस्था और जन-जागरूकता के जरिए हम इस समस्या पर काबू पा सकेंगे। तब हमारी अनमोल कलाकृतियाँ सुरक्षित रहेंगी और आने वाली पीढ़ियाँ भी इनसे अपने इतिहास और संस्कृति के बारे में सीख सकेंगी। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपनी इस अमूल्य धरोहर की रक्षा करें और इसे संजोकर रखें।

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